क्युं ख्वाहीश करूं
क्युं ख्वाहीश करूं घने
बादलोंको छुनेकी जब आपकी झुल्फोंके घने साये मेरे हैं !
क्युं तरसूं बादल के पिछे छुपे सूरजको जब आपका मुख देख सकता
हूं झुल्फोंके साये मे से!
क्युं चाहूं गुलाबकी पंखूडी को जब आपके होटोंकी पंखूडी मै
चूम सकता हूं !
मखमल मुझे कोई राहत नही देती क्युंकी आपके स्पर्श के सामने
वह कुछभी नही !
आपके बाहोंका हार भुला देता है
फूलोंके हार, और मेरा
दिल भी जात है हार !
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