Monday, December 13, 2021

यादोंमे जान होती तो

 

यादोंमे जान होती तो

यादें, या तो ताजा़ होती हैं या तो भूली जाती हैं. अगर यादोंमे जान होती तो आवाज लगाके पास बुलाता !

यादोंमे जान होती तो पास बिठाके बातें करता, गुफ्तगू करता.

यादोंमे जान होती तो नानी के पीतल के डिब्बे से लड्डू चुराता, और रात को कहानी सुनते सुनते नानी की गोदमे सो जाता.

यादोंमे जान होती तो भाईयों के साथ मस्ती करता, आई की डांट खाता और फिर उसे मनाने क दिले मस्का लगाता.

यादोंमे जान होती तो रेडीयो उंची आवाज मे लगाता, और पिताजी की आवाज सुनतेही....'सहगल' लगाता.

यादोंमे जान होती तो आवाज मे आवाज मिलाकर गाना गाता, भले बेसुरा, पर अपने के साथ तो गाता.

यादोंमे जान होती तो साथ साथ घुमने निकलता, समंदर किनारे रेत मे नाम लिखता.

यादोंमे जान होती तो दोस्तों के साथ मटरगस्ती करते नुक्कडपे होता, तो कभी गलीमे गिली डंडा खेलता, किसी के खिडकी की कांच तोडता.

यादोंमे जान होती तो फिर से सखीयोंके साथ वक्त बिताता, बेफजूलकी बातें करता.

यादोंमे जान होती तो फिर से किसी के गालोंपर पडते सूरज किरण देखता, उन्हे लाली चढते देखता.

यादोंमे जान होती तो कुछ यादोंको दूर भेजता, कभी न आनेके लिए.

उफ्फ ये यादें !!!

1 comment:

  1. यादों का ये सिलसिला बहुत खूब है, बस यूही यादों के लय को बढ़ाते रहो 😊

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